BA Semester-5 Paper-1 Fine Arts - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2803
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- गुप्तकालीन मन्दिरों में की गई कारीगरी का वर्णन कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. गुप्तकालीन मन्दिरों के उद्भव पर प्रकाश डालिए।
2. गुप्तकालीन मन्दिरों की क्या विशेषताएँ थीं?

उत्तर -

गुप्तकालीन मन्दिर इष्टिका व प्रस्तर से निर्मित प्राचीनतम संरचनात्मक मन्दिर हैं, जो आकार में लघु हैं। मन्दिर में वर्गाकार गर्भगृह तथा लघु आकार का मण्डप मिलता है जिसमें उपासकों के बैठने के लिए कोई स्थान नहीं था। अतः गुप्त युग के द्वितीय एवं तृतीय वर्ग (भाग) के मन्दिरों से यह स्पष्ट हो जाता है कि मन्दिर वास्तु का शिल्पी ऊर्ध्वाधर कोणिक ऊँचाई पर अधिक ध्यान देने लगा था। कालान्तर में शिल्पी ने अपनी कल्पना साकार करने के लिए द्वितीय व तृतीय वर्ग के गुप्त मन्दिरों का ही सहारा लिया था, जिसके आधार पर उसने अपनी कल्पना को साकार करते हुए आगे आने वाले मन्दिर वास्तु शिल्प के इतिहास में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया था।

मन्दिरों का उद्भव - भारतीय प्राचीन लेखों व साहित्य में मानव आवास तथा देव आवास के लिए समान शब्दों का ही प्रयोग किया गया है। जिससे यह कहा जा सकता है कि मन्दिर वास्तु के उद्भव में वे ही नैसर्गिक तत्त्व जिम्मेदार हैं जिनसे सामान्य वास्तुकला का उद्भव हुआ है, तो गलत न होगा।

मन्दिरों के उद्भव में धर्म का भी बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। देवताओं के प्रतिमा रूप में कल्पना को साकार करने के साथ-साथ मानव मन में अपने आराध्य देव के स्थापन हेतु एक ऐसी जगह की आवश्यकता थी जिसमें उपासक के आराध्य देव को स्थापित किया जा सके। इसी कल्पना को साकार करते हुए अपने परम आराध्य देव के लिए उपासकों ने परिश्रम और श्रद्धा के साथ लघु देवालय का निर्माण किया, जिसके कारण मन्दिर वास्तु का उद्भव प्रकाश में आया।'

ऋग्वेद के एक मन्त्र में मरुत देव के मन्दिर की कल्पना की गयी है। अतः ऋग्वेद में भी प्रतिमा एवं मन्दिर दोनों के अस्तित्व के अनेक साहित्यिक साक्ष्य प्रदत्त होते हैं। इसी प्रकार गृहसूत्रों में भी देवगृह देवायतन, देवप्रासाद आदि शब्द मन्दिर के लिए प्रयुक्त किये गये हैं, जिससे समय भी मन्दिर होने का अनुमान लगाया जा सकता है। अतः यह कहा जा सकता है कि उत्तर वैदिक युग से ही भक्ति सम्प्रदाय के विकसित होने के साथ-साथ देवालयों का भी निर्माण किया गया परन्तु तृण एवं काष्ठ से निर्मित ये देवालय साहित्य में तो अपना अस्तित्व कायम रखे हैं लेकिन उस समय का उनका भौतिक स्वरूप सदा के लिए नष्ट हो गया।

मन्दिरों के उद्भव के विषय में समरांगण सूत्राधार में यह बताया गया है कि ब्रह्मा जी ने व्योम मार्ग में भ्रमण करने हेतु पंचविमानों का निर्माण किया, उसी तरह से इन्होंने प्रस्तर, इष्टिका तथा काष्ठ से प्रासादों का निर्माण किया, जिससे नगरों की शोभा अत्यन्त मनोहारी हो गयी। अतः इन्हीं के विवरण के आधार पर शिखरों व देवालयों की उत्पत्ति की सम्भावना व्यक्त की जा सकती है।

संक्षेप में, मानव ने अपने आवास के साथ ही साथ अपने आराध्य देव के निवास हेतु देवालय का भी निर्माण किया, जिसमें मानव अपने आराध्य देव को स्थापित करके उनकी पूजा-अर्चना कर सके। मानव के चहुँमुखी विकास के साथ ही साथ शनैः-शनैः मन्दिरों में भी परिवर्तन होने लगा जो गुप्तकाल में अपनी बाल्यावस्था में लौकिक होता है।

गुप्तकालीन मन्दिरों की विशेषताएँ - गुप्तकालीन मन्दिरों की निर्माण शैली के आधार पर इनकी कुछ सामान्य विशेषताएँ हैं, जो इस प्रकार हैं-

1. गुप्तयुगीन मन्दिरों का निर्माण ऊँचे चबूतरे पर हुआ था। इस चबूतरे पर चढ़ने के लिए सोपान बनाये गये थे।

2. प्रारम्भ में मन्दिरों की छतें चपटी बनायी जाती थीं, किन्तु आगे चलकर शिखरों का निर्माण होने लगा।

3. मन्दिर के अन्दर एक वर्गाकार कक्ष होता था, जिसमें प्रतिमा रखी जाती थी। यही मन्दिर का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग होता था जिसे गर्भगृह कहा जाता है।

4. यह गर्भगृह तीन ओर से भित्तियों से घिरा हुआ होता है तथा चौथी भित्ति पर प्रवेश द्वार बना होता था, जो अलंकरणयुक्त होता था।

5. गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणापथ मार्ग बना होता था जिसके ऊपर छाया के लिए छत बनी रहती थी।

6. पहले गर्भगृह की भित्तियाँ सादी होती थीं किन्तु आगे चलकर उन्हें प्रतिमाओं तथा अन्य
अलंकरणों से अलंकृत किया जाने लगा।

7. मन्दिर के आगे एक द्वार मण्डप होता था जो स्तम्भों पर टिका रहता था।

8. मन्दिरों की छत चार अलंकृत स्तम्भों पर टिकी होती थीं तथा स्तम्भों के शीर्ष भाग पर वर्गाकार पाषाण खण्ड रखा होता था, जिस पर चार-चार सिंह एक-दूसरे से पीठ सटाये बैठे हुए अंकित किये हैं।

9. गुप्तकाल के अधिकांश मन्दिर पाषाण निर्मित हैं, केवल कानपुर के भीतरगाँव स्थल का मन्दिर ही इष्टिका निर्मित हैं।

10. गर्भगृह के प्रवेशद्वार पर बने चौखटे में मकरवाहिनी गंगा तथा कूर्मवाहिनी यमुना की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की गयी हैं जो गुप्तकाल के कला की मूल विशेषता है।

11. गर्भगृह में केवल देव प्रतिमा ही स्थापित रहती थी तथा उसमें उपासकों के एकत्र होने का कोई भी स्थान नहीं होता था।

12. मन्दिर में प्रतीक चिह्नों का भी अंकन किया गया है जिसमें स्वास्तिक श्रीवृक्ष, शंख, पदम, कलश आदि को स्थान दिया गया है। महाकवि कालिदास ने भी शंख तथा पदम के अंकन का उल्लेख किया है।

इस प्रकार गुप्तकालीन मन्दिरों में वास्तु और स्तम्भ व उनके अलंकरण, झरोखे तथा मन्दिर के शिखर आदि सब मिलकर अपनी अनोखी, विस्मयकारी कलाकारी को समेटे हुए अपनी कहानी अपनी जुबानी कहते हुए प्रतीत होती है।

5. स्तूप - स्तूपों का निर्माण तथागत के महापरिनिर्वाण के पश्चात् उनके अवशेषों पर स्मृति हेतु किया जाता था। गुप्तकालीन मन्दिरों के अतिरिक्त बौद्ध स्तूपों का भी अस्तित्व प्रकाश में आता है। पहला सारनाथ का धमेख स्तूप, दूसरा बिहार के राजगृह स्थित जरासन्ध की बैठक स्तूप। दोनों ही स्तूप का निर्माण गुप्त सम्राटों के ही शासनकाल में हुआ था।

धमेख स्तूप का वर्णन - सारनाथ स्थित धमेख स्तूप की ऊँचाई 128 फुट है जो इष्टिका निर्मित है। इसकी विशेषता यह है कि यह चबूतरे पर न बनाकर समतल धरातल पर बनाया गया है। इस स्तूप के चारों कोने पर बौद्ध प्रतिमाएँ रखने के लिए आले बनाए गये हैं। धमेख स्तूप के उत्खनन में पुराविद् कनिंघम महोदय को एक लेख प्राप्त हुआ है जिससे इस स्तूप का निर्माण गुप्तकालीन ही सिद्ध होता है। इस स्तूप में बने देव प्रकोष्ठों के निचले भाग को अलंकृत करने के लिए रेखाकृतियों और पुष्पांकित एक चौड़ी पट्टिका का सहारा लिया गया है। इस स्तूप के प्रस्तर पर अंकित कलाकृतियाँ गुप्तकाल का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करती हैं।

बिहार के राजगृह स्थित जरासन्ध की बैठक नामक स्तूप भी धमेख स्तूप के समकक्ष ही है लेकिन इस स्तूप का निर्माण समतल धरातल पर न करके चबूतरे पर किया गया है।

गुप्तकाल का एक महत्त्वपूर्ण स्तूप पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में मीरपुर खास नामक स्थान पर स्थित है। इस स्तूप का निर्माण प्रारम्भिक गुप्तकाल में करवाया गया था जिसमें तीन लघु चैत्य बने हुए हैं। बीच वाले चैत्य में इष्टिका की सुन्दर मेहराब बनायी गयी है। इस स्तूप में. उत्कीर्ण और अलंकृत इष्टिका एवं मृण्मयी बौद्ध प्रतिमाएँ गुप्तकालीन मृदभाण्ड कला के सुन्दर उदाहरण माने गये हैं। यह स्तूप वर्गाकार आधार पर बनाया गया है।

6. विहार - गुप्तयुगीन विहारों के ध्वन्सावशेष वाराणसी के सारनाथ तथा नालन्दा (पटना) से मिले हैं। सारनाथ के विहार में प्राप्त सामग्री एवं गवाक्ष से यह प्रमाणित होता है कि ये विहार गुप्तकालीन ही थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार, "नालन्दा में गुप्त सम्राटों ने विहार का निर्माण करवाया था जो भिक्षुओं के निवास के साथ ही साथ वहाँ उन्हें उच्च शिक्षा भी प्रदान की जाती थी।"

इस प्रकार इस काल में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित स्तूपों का अनुपम उदाहरण प्राप्त होता है और इसके साथ ही साथ बौद्ध भिक्षुओं के निवास हेतु विहार भी प्राप्त होते हैं जो अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध हैं।

7. स्तम्भ - स्तम्भों के निर्माण की परम्परा भी पूर्व की भाँति गुप्तकाल में भी चलती रही। गुप्तकालीन स्तम्भों को सामान्य दृष्टि से तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है - कीर्ति- स्तम्भ, ध्वज-स्तम्भ, सीमा स्तम्भ। गुप्त सम्राटों को प्रशस्ति स्तम्भों की परम्परा को परिवर्तित करने का श्रेय प्राप्त है। इसका उदाहरण सम्राट अशोक के इलाहाबाद वाले स्तम्भ पर देखा जा सकता है जिस पर गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त ने अपना प्रयाग प्रशस्ति (कीर्ति) का वर्णन खुदवा दिया है। भारत की राजधानी दिल्ली के मेहरौली नामक स्थान पर 'चन्द्र' नामक शासक का लौह स्तम्भ है जिस पर संस्कृत में तीन छन्दों में एक अभिलेख उत्कीर्ण है। यह लेख पाँचवी शताब्दी ईसवी की लिपि में अंकित की गयी है। इस अभिलेख में समय का उल्लेख नहीं किया गया है। यह स्तम्भ सम्पूर्ण देश में अकेला है जो लौह निर्मित है। इस स्तम्भ का भार लगभग 6.25 टन है और ऊँचाई लगभग 8 मीटर के आसपास है। यह लौह स्तम्भ आज भी जंगरहित बिल्कुल पहले जैसा ही चमकदार है। इसी प्रकार स्कन्दगुप्त के समय के भी दो स्तम्भ प्राप्त होते हैं जो पाषाण निर्मित हैं। पहला स्तम्भ उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के कहाँव नामक स्थान से प्राप्त है। इस पाषाण स्तम्भ पर अंकित अभिलेख का सम्बन्ध पाँच जैन तीर्थंकरों से है जिसकी स्थापना मद्र नामक व्यक्ति ने की थी। दूसरा स्तम्भ भी पहले स्तम्भ की भाँति पाषाण निर्मित ही है जो उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के सैदपुर-भितरी नामक स्थल से प्राप्त है। इस स्तम्भ पर बड़े ही सौन्दर्यपूर्ण ढंग से स्कन्दगुप्त की काव्यमयी प्रशस्ति उत्कीर्ण की गयी है। सम्भवतः इस स्तम्भ का निर्माण सम्राट स्कन्दगुप्त ने भगवान विष्णु की प्रतिमा की स्थापना के उपलक्ष में करवाया था।

गुप्त सम्राट बुद्धगुप्त के शासनकाल में एरण नामक स्थान से प्राप्त पाषाण निर्मित गरुड़- स्तम्भ कला की दृष्टि से अत्यन्त सौन्दर्यपूर्ण है जिसका अस्तित्व वर्तमान में भी बना हुआ है। यह स्तम्भ बुद्धगुप्त सम्राट के शासनकाल के सामन्त मातृविष्णु एवं धन्यविष्णु ने माता-पिता के पुण्यार्जन हेतु भगवान जनार्दन की स्थापना इस स्थान पर करायी थी।

इस प्रकार हम पाते हैं कि गुप्तकालीन सम्राट ने कला की विविध विधाओं को पूर्ण रूप से अपना संरक्षण प्रदान कर उसे पुष्पित और पल्लवित होने का पूरा अवसर प्रदान किया। सम्राट अशोक के समान ही गुप्त सम्राटों ने भी स्तम्भ के निर्माण में अपनी अद्भुत शैली का परिचय दिया है। ये स्तम्भ वर्तमान में भी खुले आकाश के नीचे जैसे निर्मित किये गये थे, वैसे ही बने हुए हैं। इनमें से कुछ स्तम्भ का ह्रास भी हुआ है फिर भी इस काल की स्तम्भ कला भारतीय कला में बेजोड़ है। सम्राटों ने स्तम्भ के द्वारा अपनी शौर्य गाथा तथा स्मृतियों को जनमानस तक पहुँचाया है। सम्राटों ने अपनी स्मृतियों को तथा शौर्य गाथा को पाषाण स्तम्भ पर उत्कीर्ण करवाकर उसे चिर- स्थायित्व प्रदान कर दिया।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- 'सिन्धु घाटी स्थापत्य' शीर्षक पर एक निबन्ध लिखिए।
  2. प्रश्न- मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के कला नमूने विकसित कला के हैं। कैसे?
  3. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज किसने की तथा वहाँ का स्वरूप कैसा था?
  4. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की मूर्ति शिल्प कला किस प्रकार की थी?
  5. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष कहाँ-कहाँ प्राप्त हुए हैं?
  6. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन किस प्रकार हुआ?
  7. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के चरण कितने हैं?
  8. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता का नगर विन्यास तथा कृषि कार्य कैसा था?
  9. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था तथा शिल्पकला कैसी थी?
  10. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की संस्थाओं और धार्मिक विचारों पर लेख लिखिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय वास्तुकला का परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- भारत की प्रागैतिहासिक कला पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  13. प्रश्न- प्रागैतिहासिक कला की प्रविधि एवं विशेषताएँ बताइए।
  14. प्रश्न- बाघ की गुफाओं के चित्रों का वर्णन एवं उनकी सराहना कीजिए।
  15. प्रश्न- 'बादामी गुफा के चित्रों' के सम्बन्ध में पूर्ण विवरण दीजिए।
  16. प्रश्न- प्रारम्भिक भारतीय रॉक कट गुफाएँ कहाँ मिली हैं?
  17. प्रश्न- दूसरी शताब्दी के बाद गुफाओं का निर्माण कार्य किस ओर अग्रसर हुआ?
  18. प्रश्न- बौद्ध काल की चित्रकला का परिचय दीजिए।
  19. प्रश्न- गुप्तकाल को कला का स्वर्ण काल क्यों कहा जाता है?
  20. प्रश्न- गुप्तकाल की मूर्तिकला पर एक लेख लिखिए।
  21. प्रश्न- गुप्तकालीन मूर्तिकला के विषय में आप क्या जानते हैं?
  22. प्रश्न- गुप्तकालीन मन्दिरों में की गई कारीगरी का वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- गुप्तकालीन बौद्ध मूर्तियाँ कैसी थीं?
  24. प्रश्न- गुप्तकाल का पारिवारिक जीवन कैसा था?
  25. प्रश्न- गुप्तकाल में स्त्रियों की स्थिति कैसी थी?
  26. प्रश्न- गुप्तकालीन मूर्तिकला में किन-किन धातुओं का प्रयोग किया गया था?
  27. प्रश्न- गुप्तकालीन मूर्तिकला के विकास पर प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- गुप्तकालीन मूर्तिकला के केन्द्र कहाँ-कहाँ स्थित हैं?
  29. प्रश्न- भारतीय प्रमुख प्राचीन मन्दिर वास्तुकला पर एक निबन्ध लिखिए।
  30. प्रश्न- भारत की प्राचीन स्थापत्य कला में मन्दिरों का क्या स्थान है?
  31. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दू मन्दिर कौन-से हैं?
  32. प्रश्न- भारतीय मन्दिर वास्तुकला की प्रमुख शैलियाँ कौन-सी हैं? तथा इसके सिद्धान्त कौन-से हैं?
  33. प्रश्न- हिन्दू मन्दिर की वास्तुकला कितने प्रकार की होती है?
  34. प्रश्न- जैन धर्म से सम्बन्धित मन्दिर कहाँ-कहाँ प्राप्त हुए हैं?
  35. प्रश्न- खजुराहो के मूर्ति शिल्प के विषय में आप क्या जानते हैं?
  36. प्रश्न- भारत में जैन मन्दिर कहाँ-कहाँ मिले हैं?
  37. प्रश्न- इंडो-इस्लामिक वास्तुकला कहाँ की देन हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- भारत में इस्लामी वास्तुकला के लोकप्रिय उदाहरण कौन से हैं?
  39. प्रश्न- इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला की इमारतों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- इण्डो इस्लामिक वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने के रूप में ताजमहल की कारीगरी का वर्णन दीजिए।
  41. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत द्वारा कौन सी शैली की विशेषताएँ पसंद की जाती थीं?
  42. प्रश्न- इंडो इस्लामिक वास्तुकला की विशेषताएँ बताइए।
  43. प्रश्न- भारत में इस्लामी वास्तुकला की विशेषताएँ बताइए।
  44. प्रश्न- इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला में हमें किस-किसके उदाहरण देखने को मिलते हैं?
  45. प्रश्न- इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला को परम्परा की दृष्टि से कितनी श्रेणियों में बाँटा जाता है?
  46. प्रश्न- इण्डो-इस्लामिक आर्किटेक्ट्स के पीछे का इतिहास क्या है?
  47. प्रश्न- इण्डो-इस्लामिक आर्किटेक्ट्स की विभिन्न विशेषताएँ क्या हैं?
  48. प्रश्न- भारत इस्लामी वास्तुकला के उदाहरण क्या हैं?
  49. प्रश्न- भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना कैसे हुई? तथा अपने काल में इन्होंने कला के क्षेत्र में क्या कार्य किए?
  50. प्रश्न- मुख्य मुगल स्मारक कौन से हैं?
  51. प्रश्न- मुगल वास्तुकला के अभिलक्षणिक अवयव कौन से हैं?
  52. प्रश्न- भारत में मुगल वास्तुकला को आकार देने वाली 10 इमारतें कौन सी हैं?
  53. प्रश्न- जहाँगीर की चित्रकला शैली की विशेषताएँ लिखिए।
  54. प्रश्न- शाहजहाँ कालीन चित्रकला मुगल शैली पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- मुगल वास्तुकला की विशेषताएँ बताइए।
  56. प्रश्न- अकबर कालीन मुगल शैली की विशेषताएँ लिखिए।
  57. प्रश्न- मुगल वास्तुकला किसका मिश्रण है?
  58. प्रश्न- मुगल कौन थे?
  59. प्रश्न- मुगल वास्तुकला की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
  60. प्रश्न- भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना कैसे हुई? तथा अपने काल में इन्होंने कला के क्षेत्र में क्या कार्य किए?
  61. प्रश्न- राजस्थान की वास्तुकला का परिचय दीजिए।
  62. प्रश्न- राजस्थानी वास्तुकला पर निबन्ध लिखिए तथा उदाहरण भी दीजिए।
  63. प्रश्न- राजस्थान के पाँच शीर्ष वास्तुशिल्प कार्यों का परिचय दीजिए।
  64. प्रश्न- हवेली से क्या तात्पर्य है?
  65. प्रश्न- राजस्थानी शैली के कुछ उदाहरण दीजिए।

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